Sunday, 20 October 2019

कश्मीरी का दर्द

आखिर कब तक बंद रहूँ मै,
इस घर की चारदीवारी में।
घुट घुट के जीत हुँ,
अपने ही आज़ाद भारत में।
खुली हवा में साँस लीये,
एक अरसा बीत गया।
आखिर क्यों मेरा मुल्क,
नरक बन गया।

ज़रा हम कभी,
अपने पड़ोसी से गुफ्तगू कर लेते।
मेले का रौनक से,
अपने नौनिहाल को लुफ्त करा सकते।
इस रूमानी मौसम में,
चीर की वादियों में अपनी माशूका के साथ इश्क़ फरमा सकते।
इन वादियों कुछ न सही,
चलते हुए सुबह की सर्द का आंनद तो ले सकते।

जाने क्यों ये मुल्क,
जलता शमशान बन गया।
धरती को स्वर्ग कहे जाने वाले हिस्से को,
न जाने क्यों नर्क बना दिया।
सत्ता के शीर्ष पे बैठे हुक्मरान ने,
वेवजह कश्मीर को जंग का मैदान बना दिया।
जाने  कितने मासूमों का,
कश्मीर कब्रगाह  बन के रह गया।
फिक्र आखिर किसे है,
मरने वाले भारतीये थे या पाकिस्तानी या  काशिमरी।

सत्ता पे काबिज हुक्मरान,
ज़रा हम कश्मीरी का भी दर्द समझो।
अपने ही घर में,
कब तक कैदी बन के रहे।
जिस मिट्टी में पैदा लीये,
उस मिट्टी को बेगाना कर दिया।
भारत पाकिस्तान के अहंकार में,
कश्मीर को जलता शमशान बना दिया।
जनाब हम श्मीरी का दर्द समझे,
जिसे सब ने खोखला बना दिया।

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