Sunday, 20 October 2019

हम तो कवि है

हम तो कवि है जनाब,
अपने में ही दुनिया में व्यस्त है।
दुनिया से क्या लेना देना,
हम तो खुद में ही निराले इंसान है।
न तो सोने की सुध है,
ना ही खाने की।
बस एक नशा है,
शब्दो को वाक्यो मे पिरोना मोती की तरह।
कोई कहता पागल,
तो कोई कहता है मतवाला।
क्या करे हम,
खुदा ने हमें कुछ अलग ही हुनर से है नवाजा।

लोगो को बस मैं देखता हूं,
कुछ मतलबी तो कुछ फरेबी,
कुछ दरियादिली दिखाते है,
तो कुछ दूसरे का निवाला छीन लेने का गुण रखते है।
कवि हूँ, चुप चाप देखता रहता हूँ।
कुछ बोल तो नही सकता,
पर कलम से तहलका मचाने का माद्दा रखता हूं।
बाजू में नही,
कलम के जरिये मार करता हूँ।

ये कवि की ही आँखे है,
जो गरीबी को देखती है।
उसका बयां कोरे पन्नों पे करते है।
गजब का कौशल है हम में,
जो दुख तो देख उस में जी कर देखता है।
भावना में बह कर हसता रोता हुआ।
क्या करूँ कवि जो हूँ।

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