Sunday, 20 October 2019

लो फिर आ गया 15 अगस्त

लो फिर आ गया 15 अगस्त,

देश की आज़ादी का त्यौहार। 

कही देशभक्ति के गाने, 

तो कही भारत माता की जय जय कार के नारे। 

चाहे वो बच्चे हो या बुड्ढे, 

सब के सब तिरंगे में सज रहे थे सारे। 

हर कही जश्न का महौल था, 

हर कोई देशभक्ति के रंग में रगां था। 

पुरे देश आज जोश में था, 

आज जो 15 अगस्त था।


मैं भी पुरे जोश में था, 

देशभक्ति के रंग में रंगा था। 

उस दिन मानो मेरे अंदर, 

लहू के जगह देशभक्ति का जज़्बा दौड़ रहा था। 

शहीद भगत सिंह, बापू और नेताजी को याद कर के, 

अपने आप को देशभक्ति के नशे में डूब रहा था। 

पल पल मैं अपने को मनो, 

इस देश का सपूत होने का फक्र कर रहा था। 

हो भी क्यों ना, आज जो 15 अगस्त था।


मैंने अपनी कार निकाली, 

निकल पड़ा मैं लाल किले को, 

जहा पे थी स्वतंत्रता दिवस तैयारी। 

जैसा होता है वैसा ही होना था, 

प्रधानमंत्री जी को लाल किले की प्राचीर से, 

भारत की विकास चर्चा करना था। 

इस मंच पे देश क्या विदेश की भी नज़रे थी, 

क्योंकि भारत की आज़ादी के बाद की विकास की बातें जो होनी थी। 

यह इस लिए हुआ क्यों 15 अगस्त था।

पूरा सहर मानो छावनी में बदला था, 

लग रहा था मानो अघोषित कर्फ्यू लगा हो। 

चाह कर भी नहीं पहुँच सका, 

दस किलोमीटर दूर से ही सुरक्षाकर्मी ने लौट दिया। 

अन्होनी का हवाला दे कर, 

पूरा जगह को सैनिकों ने सील कर दिया। 

आखिरकार लाल किले पे, 

प्रधानमंत्री का भाषण सुनने का सपना टूट गया।


जब मैं घर को लौट रहा था, 

क्या आज़ादी यही होती है? 

तभी एक लाल बत्ती पे गाडी रुकी, 

ताज़ा हवा लेने के लिए मैंने अपनी कार की खिड़की खोली। 

कुछ बच्चे बेचारे भूखे नगें, 

भारत की आज़ादी का हवाला दे कर झंडा बेच रहे थे। 

कुछ तो रंग बिरंगे गुब्बारे ले कर, पै

पैसे  के ऐवज दे रहे थे। 

मानो इतना भी काफी न था, 

कुछ किन्नर बधाई के नाम पे पैसे मांग रहे थे। 


यह सब देख के आँखे नाम हो गयी, 

ऐसा इसलिए था की आज 15 अगस्त था।

बड़ा शर्म महशुश किय, 

क्या ये भारत है जिसके लिए हमारे योद्धा ने अपना जान लगा दिया।

क्या हम झूठ मूठ की चर्चा करते है, 

उस भारत की चर्चा करते है जो संम्पन। 

क्या लाल बत्ती पे जलती गर्मी से, 

कपकपाती सर्दी में, 

कुछ बेच के या गाडी साफ़ कर के पेट पालते बच्चे के बारे में कोई क्यों नहीं सोचता। 

बेघर लोग हो या समाज से अलग किये हुए किन्नर, 

इनकी विकास के बारे में कोई क्यों नहीं सोचता। 

नेता को मालूम नहीं क्यों नहीं दिखता है ये सब, 

अरे लाल बत्ती पे तो उनकी गाडी नहीं रूकती, 

और गरीब जनता उन तक पहुँच नहीं पाते। 

ज़रा अपनी ऎसी कार की खिड़की खोल के देखो, दिख जायेगा






No comments:

Post a Comment

Struggle of Bihar’s Transwomen

                         India is a place where different types of culture and tradition exist. It is said that at every twenty kilometres f...