Sunday, 20 October 2019

खंजर और कलम

कितने भी तुम खंजर क्यो न उठा लो,
कलम का डंका हमेशा बजेगा।
 इतिहास गवाह है,
कलम हमेशा खंजर पे भारी पड़ा है।
ये तो कलम की ताकत है,
जिसके आगे सर् नतमस्तक होता है।
खंजर का क्या औकात,
जो विध्वंश फैलाता है।

एक कलम न जाने कितनों को शिक्षित कर जाता है,
खंजर का क्या है,
 सिर्फ मनवाता कत्लेआम करता है।
हिरोशिमा नागाशाकी तबाह हुआ,
इस खंजर के प्यार में।
अब भी कितने कितनो का खून बहता है,
कश्मीर , सीरिया और गाज़ा के नाम पे।
जाने कितनो का लहू पिया l  

खंजर भी हमने बनाया,
और कलम भी हमने बनाया।
फिर क्या खंजर छा गया,
कलम अंधकार में चला गया।
मानवता अपनी बेबसी पर,
बस आंसू बहाता रह गया।
एक सवाल घर कर गया,
कलम के आगे क्यो खंजर मजबूत हो गया।

कलम के प्रकाश से,
मानवता जगमग होता है।
जो कहते है अपने को अमन के परिंदे,
करते है मानवता का चीरहरण।
लहू की नदियां बहे तो बहे,
लाशो के ढेर पे राजनीति की रोटियां है सेकतेl 

एक बार ज़रा गौर से सोचो,
आखिर क्या छिपा है कश्मीर, सीरिया और गाज़ा में।
कलम के जगह,
हथिहारो का ज़खीरा खेप रहे हो।
मासूमो का हक़ है खुले हवा में सांस लेने का,
पर क्यो घोट रहे है हम उन मासूमो का दम।
अंधेरे से प्रकाश में लेकर आओ,
कलम के बदौलत,
उनको भी अधिकार दिलाओ।
झूठ का बबंडर फैलाने वाले को,
कलम से हम दूर भगाये।

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