Thursday, 7 November 2024

शायर

उस खुदा को क्या बोलू,

जिसने मुझे ज़िन्दगी दिया।

हर किसी ने सोचा,

मस्त ज़िन्दगी जिये जा रहा रहा हुँ मैं।

सच्चाई तो ये है,

ज़िन्दगी के उत्तार चढाव को,

कोरे कागज़ में सिये जा रहा हु मैं।

लोग सोचते है,

शायर भी ज़िन्दगी के किस्से,

क्या मस्त हो कर सुनाये जा रहा है।

ठहाके लगा लेते है या पल भर में रो लेते है,

और फिर अपनी दुनिया में लौट जाते है।

पर एक माँ का दर्द, गरीबी की पीड़ा,

समाज का तरिस्कार या अमीर गरीब का फासला,

शायद कोई श्रोता भी समझ लेता।

मुझे वाह वाही आपकी नही चाहियें,

मेरी शायरी तब सार्थक हो जाये,

जब श्रोता पढ़ के,

ज़रा सा एक शायर के पीड़ा समझ जाएं।

ज़रा एक शायर के निगाहों से,

इस दुनिया को भांप जाये।

नही तो मजे लेकर तो,

शायरी सब पढ़ते है।

कुछ पढ़ते पढ़ते सुकून के नींद में लीन हो जाते है,

तो कुछ पन्ना खत्म करने की होड़ में लग जाते है।

मुद्दा कही न कही रद्दी में दम तोड़ देता है,

को कही ठोंगा बन कर अपना कुर्बानी दे डालता है।

शायर का आवाज़,

कागज़ तक में ही दम तोड़ देता है।

शायद आपका इस से सरोकार न हो,

क्योकि इसमें कविता में प्यार का अफसाना नहीं है।

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