बहुत चलाई गोली हमने,
हर तरफ कत्लेआम किया।
अमन चैन का जीवन जीने के बाजए,
हर ओर नफरत का बीज बो दिया।
जीवन के राहों को सरल बनाने के बदले,
अपनो ने ही जीवन को जटिल बना दिया।
अंजाम का परवाह किये बगैर,
निजी स्वार्थ के चक्कर में,
पूरी पीढ़ी का सत्यानाश किया।
नन्हे हाथो ने कागज़ कलम थामने के बदले,
बम बंदूक हाथों में थाम लिया।
स्कूल तो कब का छावनी में बदल गया,
खेल के मैदान में मौत का मातम पसार दिया।
असंख्य बच्चे अपनी माँ से बिछड़ गए,
आतंकवाद की भट्टियों,
मासूम बचपन को झोंका गए।
मालूम नही किसी ने क्यो नहो सोचा,
आतंकवाद के कारखाने में कितने नौनिहाल बाली चढ़ गए।
एक सुहागिन का घर बसा न पाए,
पुलवामा के नाम पे कितने सुहागिनों का सिंदूर पोछ दिया।
हद हो गयी,
एक सुहागिन ने अपने सुहाग को एक नज़र से निहारा भी न था,
हाथो की मेंहदी सूखे वगैर,
राजनीति के चक्रव्यूह में विधवा हो गयी।
सारा जीवन पड़ा था,
शुरुआत में ही प्रियवर स्वर्गवास हो गया।
सिंदूर का सिंहोरा जस का तस भर राह गया।
ज़रा आभाष करो भारत माता पे राजनीति करने वाले,
भला कैसे बिताये विधवा बिना अपने प्रियवर के सहारे।
ये जीवन तो प्रभु का है,
किसने हमे दूसरो के जीवन लेने का अधिकार दिया।
कुछ इस तरह नाटक खेल गया,
देशप्रेम के नाम पे सैनिक को बलि दिया गया।
अरे सत्ता के सौदागर,
तुम्हारे स्वार्थ के चक्कर में,
क्यो लहू लुहान कर रहे हो जन्नत को,
कश्मीर न भारत का है ना पाकिस्तान का,
ये तो उन आवाम का जो 370 के नाम पे घरो में कैद है।
कही ऐसा न हो,
इराक सीरिया और गाजा,
की तरह लिखा जाए कश्मीरी मैं बर्बादी की गाथा।
चंद लोगो के स्वार्थ के चक्कर में,
परमाणु के नोख के पे न बैठ जाये,
अपने को शीर्ष से शून्य पे न ला दे।
किसी के सनक के आगे,
खून से सना डल झील न बना दे।
हर तरफ कत्लेआम किया।
अमन चैन का जीवन जीने के बाजए,
हर ओर नफरत का बीज बो दिया।
जीवन के राहों को सरल बनाने के बदले,
अपनो ने ही जीवन को जटिल बना दिया।
अंजाम का परवाह किये बगैर,
निजी स्वार्थ के चक्कर में,
पूरी पीढ़ी का सत्यानाश किया।
नन्हे हाथो ने कागज़ कलम थामने के बदले,
बम बंदूक हाथों में थाम लिया।
स्कूल तो कब का छावनी में बदल गया,
खेल के मैदान में मौत का मातम पसार दिया।
असंख्य बच्चे अपनी माँ से बिछड़ गए,
आतंकवाद की भट्टियों,
मासूम बचपन को झोंका गए।
मालूम नही किसी ने क्यो नहो सोचा,
आतंकवाद के कारखाने में कितने नौनिहाल बाली चढ़ गए।
एक सुहागिन का घर बसा न पाए,
पुलवामा के नाम पे कितने सुहागिनों का सिंदूर पोछ दिया।
हद हो गयी,
एक सुहागिन ने अपने सुहाग को एक नज़र से निहारा भी न था,
हाथो की मेंहदी सूखे वगैर,
राजनीति के चक्रव्यूह में विधवा हो गयी।
सारा जीवन पड़ा था,
शुरुआत में ही प्रियवर स्वर्गवास हो गया।
सिंदूर का सिंहोरा जस का तस भर राह गया।
ज़रा आभाष करो भारत माता पे राजनीति करने वाले,
भला कैसे बिताये विधवा बिना अपने प्रियवर के सहारे।
ये जीवन तो प्रभु का है,
किसने हमे दूसरो के जीवन लेने का अधिकार दिया।
कुछ इस तरह नाटक खेल गया,
देशप्रेम के नाम पे सैनिक को बलि दिया गया।
अरे सत्ता के सौदागर,
तुम्हारे स्वार्थ के चक्कर में,
क्यो लहू लुहान कर रहे हो जन्नत को,
कश्मीर न भारत का है ना पाकिस्तान का,
ये तो उन आवाम का जो 370 के नाम पे घरो में कैद है।
कही ऐसा न हो,
इराक सीरिया और गाजा,
की तरह लिखा जाए कश्मीरी मैं बर्बादी की गाथा।
चंद लोगो के स्वार्थ के चक्कर में,
परमाणु के नोख के पे न बैठ जाये,
अपने को शीर्ष से शून्य पे न ला दे।
किसी के सनक के आगे,
खून से सना डल झील न बना दे।
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