Sunday, 20 October 2019

हम तो कवि है

हम तो कवि है जनाब,
अपने में ही दुनिया में व्यस्त है।
दुनिया से क्या लेना देना,
हम तो खुद में ही निराले इंसान है।
न तो सोने की सुध है,
ना ही खाने की।
बस एक नशा है,
शब्दो को वाक्यो मे पिरोना मोती की तरह।
कोई कहता पागल,
तो कोई कहता है मतवाला।
क्या करे हम,
खुदा ने हमें कुछ अलग ही हुनर से है नवाजा।

लोगो को बस मैं देखता हूं,
कुछ मतलबी तो कुछ फरेबी,
कुछ दरियादिली दिखाते है,
तो कुछ दूसरे का निवाला छीन लेने का गुण रखते है।
कवि हूँ, चुप चाप देखता रहता हूँ।
कुछ बोल तो नही सकता,
पर कलम से तहलका मचाने का माद्दा रखता हूं।
बाजू में नही,
कलम के जरिये मार करता हूँ।

ये कवि की ही आँखे है,
जो गरीबी को देखती है।
उसका बयां कोरे पन्नों पे करते है।
गजब का कौशल है हम में,
जो दुख तो देख उस में जी कर देखता है।
भावना में बह कर हसता रोता हुआ।
क्या करूँ कवि जो हूँ।

भारत , पाकिस्तान और काश्मीर

बहुत चलाई गोली हमने,
हर तरफ कत्लेआम किया।
अमन चैन का जीवन जीने के बाजए,
हर ओर नफरत का बीज बो दिया।
जीवन के राहों को सरल बनाने के बदले,
अपनो ने ही जीवन को जटिल बना दिया।
अंजाम का परवाह किये बगैर,
निजी स्वार्थ के चक्कर में,
पूरी पीढ़ी का सत्यानाश किया।

नन्हे  हाथो ने कागज़ कलम थामने के बदले,
बम बंदूक हाथों में थाम लिया।
स्कूल तो कब का छावनी में बदल गया,
खेल के मैदान में मौत का मातम पसार दिया।
असंख्य बच्चे अपनी माँ से बिछड़ गए,
आतंकवाद की भट्टियों,
मासूम बचपन को झोंका गए।
मालूम नही किसी ने क्यो नहो सोचा,
आतंकवाद के कारखाने में कितने नौनिहाल बाली चढ़ गए।

एक सुहागिन का घर बसा न पाए,
पुलवामा के नाम पे कितने सुहागिनों का सिंदूर पोछ दिया।
हद हो गयी,
एक सुहागिन ने अपने सुहाग को एक नज़र से निहारा भी न था,
हाथो की मेंहदी सूखे वगैर,
राजनीति के चक्रव्यूह में विधवा हो गयी।
सारा जीवन पड़ा था,
शुरुआत में ही प्रियवर स्वर्गवास हो गया।
सिंदूर का सिंहोरा जस का तस भर राह गया।
ज़रा आभाष करो भारत माता पे राजनीति करने वाले,
भला कैसे बिताये विधवा बिना अपने प्रियवर के सहारे।

ये जीवन तो प्रभु का है,
किसने हमे दूसरो के जीवन लेने का अधिकार दिया।
कुछ इस तरह नाटक खेल गया,
देशप्रेम के नाम पे सैनिक को बलि दिया गया।
अरे सत्ता के सौदागर,
तुम्हारे स्वार्थ के चक्कर में,
क्यो लहू लुहान कर रहे हो जन्नत को,
कश्मीर न भारत का है ना पाकिस्तान का,
ये तो उन आवाम का जो 370 के नाम पे घरो में कैद है।

कही ऐसा न हो,
इराक सीरिया और गाजा,
की तरह लिखा जाए कश्मीरी मैं बर्बादी की गाथा।
चंद लोगो के स्वार्थ के चक्कर में,
परमाणु के नोख के पे न बैठ जाये,
अपने को शीर्ष से शून्य पे न ला दे।
किसी के सनक के आगे,
खून से सना डल झील न बना दे।

बिहारी हूं मैं

बिहारी हूं मैं,
इस बात का मुझे है गर्व।
हाँ उस धरती से हूं मैं,
जो धरती है गौतम बुद्ध की।
चंपारण का मैं लाल हूं,
जहाँ सत्याग्रह का नींव डला।
उस नालंदा का अंश हूं,
जो इस विश्व का गुरु बना।
मुझे फक्र है,
मैं बिहार में पैदा लिया।

हँस लेते हो तुम,
हमारी भेषभूषा को देख के,
हमारे भोलापन को,
तुमने मूर्ख का परिभाषा दिया।
हमे तो कुछ करने में शर्म नही किया,
पर आखिर क्यों तुम हमसे जलते हो।
रिक्शावाला भी बिहारी है,
और संसद में बैठा भी बिहारी है।
अधिकारी भी बिहारी है,
गर्व है मुझे बिहारी होने पे।

आखिर क्या समस्या है हमसे,
मजदूरी करता है बिहारी,
कानून व्यवस्था का रखवाला बिहारी,
संसद में दहाड़ता है बिहारी।
प्राइम टाइम दिखता रविश हो या आजतक पे शेवता।
अरे हमसे नफरत करनेवालो,
दिल्ली हम बिहारियो से चलती है।
हमे फक्र है ,
बिहारी होने पे।

लो फिर आ गया 15 अगस्त

लो फिर आ गया 15 अगस्त,

देश की आज़ादी का त्यौहार। 

कही देशभक्ति के गाने, 

तो कही भारत माता की जय जय कार के नारे। 

चाहे वो बच्चे हो या बुड्ढे, 

सब के सब तिरंगे में सज रहे थे सारे। 

हर कही जश्न का महौल था, 

हर कोई देशभक्ति के रंग में रगां था। 

पुरे देश आज जोश में था, 

आज जो 15 अगस्त था।


मैं भी पुरे जोश में था, 

देशभक्ति के रंग में रंगा था। 

उस दिन मानो मेरे अंदर, 

लहू के जगह देशभक्ति का जज़्बा दौड़ रहा था। 

शहीद भगत सिंह, बापू और नेताजी को याद कर के, 

अपने आप को देशभक्ति के नशे में डूब रहा था। 

पल पल मैं अपने को मनो, 

इस देश का सपूत होने का फक्र कर रहा था। 

हो भी क्यों ना, आज जो 15 अगस्त था।


मैंने अपनी कार निकाली, 

निकल पड़ा मैं लाल किले को, 

जहा पे थी स्वतंत्रता दिवस तैयारी। 

जैसा होता है वैसा ही होना था, 

प्रधानमंत्री जी को लाल किले की प्राचीर से, 

भारत की विकास चर्चा करना था। 

इस मंच पे देश क्या विदेश की भी नज़रे थी, 

क्योंकि भारत की आज़ादी के बाद की विकास की बातें जो होनी थी। 

यह इस लिए हुआ क्यों 15 अगस्त था।

पूरा सहर मानो छावनी में बदला था, 

लग रहा था मानो अघोषित कर्फ्यू लगा हो। 

चाह कर भी नहीं पहुँच सका, 

दस किलोमीटर दूर से ही सुरक्षाकर्मी ने लौट दिया। 

अन्होनी का हवाला दे कर, 

पूरा जगह को सैनिकों ने सील कर दिया। 

आखिरकार लाल किले पे, 

प्रधानमंत्री का भाषण सुनने का सपना टूट गया।


जब मैं घर को लौट रहा था, 

क्या आज़ादी यही होती है? 

तभी एक लाल बत्ती पे गाडी रुकी, 

ताज़ा हवा लेने के लिए मैंने अपनी कार की खिड़की खोली। 

कुछ बच्चे बेचारे भूखे नगें, 

भारत की आज़ादी का हवाला दे कर झंडा बेच रहे थे। 

कुछ तो रंग बिरंगे गुब्बारे ले कर, पै

पैसे  के ऐवज दे रहे थे। 

मानो इतना भी काफी न था, 

कुछ किन्नर बधाई के नाम पे पैसे मांग रहे थे। 


यह सब देख के आँखे नाम हो गयी, 

ऐसा इसलिए था की आज 15 अगस्त था।

बड़ा शर्म महशुश किय, 

क्या ये भारत है जिसके लिए हमारे योद्धा ने अपना जान लगा दिया।

क्या हम झूठ मूठ की चर्चा करते है, 

उस भारत की चर्चा करते है जो संम्पन। 

क्या लाल बत्ती पे जलती गर्मी से, 

कपकपाती सर्दी में, 

कुछ बेच के या गाडी साफ़ कर के पेट पालते बच्चे के बारे में कोई क्यों नहीं सोचता। 

बेघर लोग हो या समाज से अलग किये हुए किन्नर, 

इनकी विकास के बारे में कोई क्यों नहीं सोचता। 

नेता को मालूम नहीं क्यों नहीं दिखता है ये सब, 

अरे लाल बत्ती पे तो उनकी गाडी नहीं रूकती, 

और गरीब जनता उन तक पहुँच नहीं पाते। 

ज़रा अपनी ऎसी कार की खिड़की खोल के देखो, दिख जायेगा






अगर चित्रकार होता


अगर चित्रकार होता तो उतार देता उनकी मुस्कान,
अपने दिल के कैनवास परl 
अगर छायाकार होता तो कर देता कैद उनकी सुंदरता,
अपने दिल के कैमरा में। 
कर देता शायरी उनकी जुल्फों को लेकर,
अगर होता मैं एक शायर। 
ना चित्रकार हू और न ही हू मैं शायर,
बस लिख रहा हू कुछ पंक्तियाँ इस परी की खूबसूरती को देख कर। 

हो गयी मुलाकात हमारी,
उनसे एक रोज। 
था ये मेरे भाग्य का योग,
या फिर महज एक संजोग।              
यु हम मिलते है बहुतों से हर रोज,
पर क्या किसी परी से होती है मुलाकात हर रोज?
यही होता है भाग्य का योग। 

चाँद से सुंदरता में तुलना करना,
होगी बडी बेमानी। 
इससे होगी उनकी बडी बदनामी,
चाँद भी भरता है आप के आगे पानी। 
सुंदरता में जिसका जवाब न हो,
वो लाजवाब है आप। 
मेरे हिसाब से मोहतरमा,
विश्व सुंदरी है आप। 
आप की बातें हो या शराराते या फिर हो हसी की दिलकश अदा,
कर देती ये सब चीज़े दूसरों से जुदा। 

अगर आप न करे एतराज,
तो हमें बना ले अपना हमराज़। 
हमे आप मिले या ना मिले,
हमें कोई गम नहीं। 
एक छोटी सी अरमा है अपने भी दिल में कही,
बस थोड़ी सी जगह चहिये एक दोस्त की तरह आप की दिल में हर घडी। 







खंजर और कलम

कितने भी तुम खंजर क्यो न उठा लो,
कलम का डंका हमेशा बजेगा।
 इतिहास गवाह है,
कलम हमेशा खंजर पे भारी पड़ा है।
ये तो कलम की ताकत है,
जिसके आगे सर् नतमस्तक होता है।
खंजर का क्या औकात,
जो विध्वंश फैलाता है।

एक कलम न जाने कितनों को शिक्षित कर जाता है,
खंजर का क्या है,
 सिर्फ मनवाता कत्लेआम करता है।
हिरोशिमा नागाशाकी तबाह हुआ,
इस खंजर के प्यार में।
अब भी कितने कितनो का खून बहता है,
कश्मीर , सीरिया और गाज़ा के नाम पे।
जाने कितनो का लहू पिया l  

खंजर भी हमने बनाया,
और कलम भी हमने बनाया।
फिर क्या खंजर छा गया,
कलम अंधकार में चला गया।
मानवता अपनी बेबसी पर,
बस आंसू बहाता रह गया।
एक सवाल घर कर गया,
कलम के आगे क्यो खंजर मजबूत हो गया।

कलम के प्रकाश से,
मानवता जगमग होता है।
जो कहते है अपने को अमन के परिंदे,
करते है मानवता का चीरहरण।
लहू की नदियां बहे तो बहे,
लाशो के ढेर पे राजनीति की रोटियां है सेकतेl 

एक बार ज़रा गौर से सोचो,
आखिर क्या छिपा है कश्मीर, सीरिया और गाज़ा में।
कलम के जगह,
हथिहारो का ज़खीरा खेप रहे हो।
मासूमो का हक़ है खुले हवा में सांस लेने का,
पर क्यो घोट रहे है हम उन मासूमो का दम।
अंधेरे से प्रकाश में लेकर आओ,
कलम के बदौलत,
उनको भी अधिकार दिलाओ।
झूठ का बबंडर फैलाने वाले को,
कलम से हम दूर भगाये।

कश्मीरी का दर्द

आखिर कब तक बंद रहूँ मै,
इस घर की चारदीवारी में।
घुट घुट के जीत हुँ,
अपने ही आज़ाद भारत में।
खुली हवा में साँस लीये,
एक अरसा बीत गया।
आखिर क्यों मेरा मुल्क,
नरक बन गया।

ज़रा हम कभी,
अपने पड़ोसी से गुफ्तगू कर लेते।
मेले का रौनक से,
अपने नौनिहाल को लुफ्त करा सकते।
इस रूमानी मौसम में,
चीर की वादियों में अपनी माशूका के साथ इश्क़ फरमा सकते।
इन वादियों कुछ न सही,
चलते हुए सुबह की सर्द का आंनद तो ले सकते।

जाने क्यों ये मुल्क,
जलता शमशान बन गया।
धरती को स्वर्ग कहे जाने वाले हिस्से को,
न जाने क्यों नर्क बना दिया।
सत्ता के शीर्ष पे बैठे हुक्मरान ने,
वेवजह कश्मीर को जंग का मैदान बना दिया।
जाने  कितने मासूमों का,
कश्मीर कब्रगाह  बन के रह गया।
फिक्र आखिर किसे है,
मरने वाले भारतीये थे या पाकिस्तानी या  काशिमरी।

सत्ता पे काबिज हुक्मरान,
ज़रा हम कश्मीरी का भी दर्द समझो।
अपने ही घर में,
कब तक कैदी बन के रहे।
जिस मिट्टी में पैदा लीये,
उस मिट्टी को बेगाना कर दिया।
भारत पाकिस्तान के अहंकार में,
कश्मीर को जलता शमशान बना दिया।
जनाब हम श्मीरी का दर्द समझे,
जिसे सब ने खोखला बना दिया।

ज़रा फुर्सत मिले तो

ज़रा फुर्सत मिले तो एक बार सोच लेना,
तुम तो चली गई मेरी ज़िंदगी से।
मुझे तन्हा छोड़ गई,
अकेले जीने को।
कितना आसान था ना,
दिल लगा के तोड़ जाना।
बीच मझधार में छोड़ जाना,
ज़िन्दा रह के भी ज़िन्दगी को बेरंग कर जाना।

बहुत आसान होता है ना,
छोटी छोटी बातों पर  गलतफहमी पैदा कर लेना।
आखिर एक दिन,
गलतफहमी कत्ल कर देती है रिश्तों का।
कुछ कपड़े ही तो लेने थे,
और हमेशा के लिए ज़िन्दगी के लिए चली गयी।
मैं भी विस्मित होकर देखता रहा,
पर अल्फ़ाज़ भी मानो कम पड़ गए थे।
रिश्तो का कत्ल हो रहा था,
और लोग तमाशबीन थे।

काश तुम रुक जाती उस दिन,
तो शायद तन्हा राते न गुजरती।
दिन का क्या है,
दोस्त यार ही दिल लगा देते है।
पर रातें में,
घुट घुट के रोता हूँ।
हाँ डरता हूँ मैं,
अपने तन्हाई से।

तुम थी ज़िन्दगी में तो,
घर था, और उस घर में प्यार था।
जो कुछ था,
वही पर्याप्त था ज़िन्दगी में।
भले कुछ ना था चारदीवारी में,
पर वो घर था।

तुम क्या गयी ज़िन्दगी से,
मानो ज़िन्दगी जीने का सलीखा ही भूल गया।
डगमगा सी गयी ज़िन्दगी,
प्यार क्या चीज़ होता है,
मैं उसको भूल गया,
सब कुछ राह के भी,
मैं भिखारी रह गया।

Half the life has passed

Half the life has passed, Half is remaining. Yesterday we were children, The best days which we have learned. What a day it was, Happy and f...